जल संरक्षण के साथ विरासत की वापसी: मध्यप्रदेश के गाँव में जीवित हो रहा इतिहास, कायथा की 300 साल पुरानी बावड़ी का हो रहा जिर्णोद्धार!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की दूरदर्शी सोच और पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के अनुरूप प्रदेशभर में “जल गंगा जल संवर्धन अभियान” का योजनाबद्ध क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस महत्वाकांक्षी अभियान का उद्देश्य जनभागीदारी के माध्यम से जल संरक्षण और संवर्धन को सुनिश्चित करना है, जिससे जल संकट जैसी चुनौती से न केवल निपटा जा सके, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित जल स्रोतों का निर्माण भी हो सके।

इसी कड़ी में जिले में स्थित प्राचीन जल स्रोतों—जैसे कि बावड़ियाँ, कुएँ और कुंड—की साफ-सफाई एवं जिर्णोद्धार का कार्य युद्धस्तर पर चलाया जा रहा है। विशेष रूप से सामाजिक सहभागिता और विभिन्न विभागों की संयुक्त पहल के माध्यम से इन कार्यों को धरातल पर उतारा जा रहा है। इस अभियान में नवीन जल संग्रहण संरचनाओं के निर्माण के साथ-साथ पुराने जल स्रोतों की मरम्मत, जल वितरण प्रणाली की सफाई, भू-जल पुनर्भरण, मानसून पूर्व पौधारोपण की तैयारी और जल प्रदूषण को कम करने जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कार्य प्राथमिकता से किया जा रहा है।

इसी अभियान के अंतर्गत तराना जनपद की ग्राम पंचायत कायथा में स्थित एक 300 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक बावड़ी का कायाकल्प किया जा रहा है, जिसे मराठा साम्राज्य की महान शासिका देवी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया था। यह बावड़ी स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है, जिसमें चूना, सीमेंट या किसी रासायनिक तत्व का उपयोग किए बिना, विशिष्ट तकनीक से पत्थरों को जोड़कर निर्माण किया गया था। बावड़ी का निर्माण ग्रामीणजनों को शुद्ध पेयजल की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया था और वर्षों तक यह गांव की जीवनरेखा बनी रही।

बावड़ी न केवल जल का स्रोत रही है, बल्कि यह ग्रामीण आस्था और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रही है। आज भी ग्रामीणजन बावड़ी के समीप पूजा-अर्चना करते हैं और इसे पवित्र स्थान मानते हैं। वर्तमान में बावड़ी की भौतिक स्थिति भले ही अच्छी बनी हुई है, पर वर्षों की उपेक्षा के चलते इसमें गाद भर गई थी और मुण्डेर की स्थिति भी जर्जर हो गई थी। इसके मद्देनज़र, नर्मदा घाटी परियोजना के माध्यम से बावड़ी के जिर्णोद्धार का कार्य हाथ में लिया गया है, जिसकी शुरुआत 4 मई 2025 को की गई।

इस जिर्णोद्धार कार्य के तहत ₹50,000 की लागत से बावड़ी से गाद निकाली जा रही है और उसकी मुण्डेर की मरम्मत का कार्य भी किया जा रहा है। यह कार्य न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है। बावड़ी का मूल स्वरूप पुनर्स्थापित होने से यह स्थल एक बार फिर से ग्रामीणों की आस्था का केंद्र बन गया है।

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